Wednesday, October 19, 2011

मैं सोच रहा था ..

क्यों होता है .. कुछ इस तरह से .. कि लोग पहले तो बातों को हल्के से लेते हैं और खूब मजाक उड़ाया करते हैं .. फिर वे खुल कर प्रतिरोध करते हैं ..
और फिर ..
इससे भी आगे निकलकर कभी झगड़ा भी करने लगते हैं .. और फिर
उसके बाद .. फिर करते हैं ..
स्वीकारोक्ति ..
मैं सोच रहा था ..
कि ..
चलो .. जो भी हुआ .. अच्छा ही हुआ
कि ..
जो भी होना था पहले ही हो गया ..
अंत भला तो सब भला ..

मैं सोच रहा था ..



कि ..
अच्छे लगते हैं
मुझे
वे लोग
जो मेरा विरोध करते हैं ..
मैं सोच रहा था ..
शायद
इसलिये कि
वे बदले में .. दरअसल
अनजाने ही सही ..
मुझे
बता जातें हैं ..
मेरी गलतियां ..

मैं सोच रहा था ..

एक रात की बात है ..
वो बता रही थी – मैंने सपने मैं देखा था अपने-आप को .. कि मेरा वजूद .. जैसे मेरा अपना नहीं रह गया था .. लग रहा था कि जैसे टूट-टूट कर बिखर रहा हो ..
मेरे इस स्केच को देखकर वह हैरान थी और .. फिर पूछने लगी कि मैंने कब इसे बनाया था ..
मैंने बताया कि मेरा ये स्केच तो काफी पुराना था और ..
जिससे मेरी बातें हो रही थी .. फिर मैं उसे जानता भी तो नहीं था ..
यह इत्तेफाक था .. गहरा इत्तेफाक .. मैं सोच रहा था ..

Tuesday, October 4, 2011

.. मैं सोच रहा था ..

- आइने का सच वो क्या जाने जो अंधा है .. मैं सोच रहा था ..
- Time splits fast that one may realize one day that the life infact is too short than what was thought earlier .. मैं सोच रहा था ..
- No need to dwell in the past .. not to dream of future .. as both are not in your hands .. but realize the present and just concentrate and enjoy .. मैं सोच रहा था ..
- Never aim too low or too high but just aim at the exact .. never get disappointed or never get overwhelmed with joy .. मैं सोच रहा था ..
- Do you know that what you dream is just possible .. मैं सोच रहा था ..
- Just desire and act for only that .. you find useful .. मैं सोच रहा था ..
- You are recognised by your acts and not by your ideas .. मैं सोच रहा था ..