Sunday, August 21, 2011

यह सही है कि सोचने से क्या होता है कि यह गलत है या फिर यह सही .. यह तो सब वक्त-वक्त की बात है .. यह सही है कि सोच पर किसी की सहमति सौभाग्य है .. और लेकिन यदि असहमति हो तो भी भला निराश क्यों होना .. क्योंकि यदि सोच में सचाई है तो आज नहीं तो कल वह अवश्य मान्य होगा .. लेकिन फिर भी यदि किसी की असहमति है तो उससे क्या कोई अभिव्यक्त करना छोड़ दे .. आवश्यकता इस बात की है कि सोच को अभिव्यक्त करना ही चाहिये .. यह सोच किसी को पसंद आ सकती है तो किसी को नहीं भी .. प्रकृति में अनेक रंग हैं किसी को अमुक रंग पसंद है तो किसी को अमुक .. सभी को एक ही रंग पसंद हो .. यह जरूरी तो नहीं ..

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