Monday, August 8, 2011

मैं सोच रहा था ..

कुछ भी लिखने से तो अच्छा है कि जब लगे कि कुछ अच्छा है तो उसे लिख दिया .. मगर एक नहीं कई बार लगा है कि जिसे मैं यूं ही समझता रहा वह परिणाम स्वरुप अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति रही .. अर्थात् जरूरी नहीं कि जिसे आप महत्वपूर्ण समझ रहे हों वह हर किसी को वैसा ही लगे .. मत भिन्नता .. इसी को तो कहते हैं .. लेकिन यह वाकिफ होते हुए भी कि मत भिन्नता होती है .. सभी-कुछ जैसे अपरिहार्य़ हो जाता है .. कभी-कभी .. मैं सोच रहा था ..

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