Friday, March 4, 2011

मैं सोच रहा था ..

विश्वास के बाद ही तो विश्वासघात .. शब्द आया होगा .. मैं सोच रहा था ..
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A successful team may not be good or equal in qualification .. in efficiency and the work experience .. BUT they are equal in COMMITMENT .. मैं सोच रहा था ..
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जो सफल होते हैं .. उनके पास भी तो दो हाथ ( कर्म के लिये), दो पैर (आगे बढ़ने के लिये) दो आंखे (observation के लिये) और एक नाक (अहम्) होता है अर्थात् वही सब-कुछ होता है .. जो असफल होता है .. लेकिन फिर भी एक सफल और कोई दूसरा असफल होता है .. । चिकित्सा-विज्ञान की पहली सीढ़ी में एनाटामी व फिजियालाजी पढते मैंने कभी लिखा था । मैं पढ़ रहा था .. मैं सोच रहा था .. ।
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कई बार फिसलते दिल की बेकाबू रफ्तार को पकड़ने में मेरी उर्जा और वक्त जोनों ही फ़िजूल ही जायज होते रहे .. और विडम्बना तो देखो कि उम्र के इस पड़ाव में भी .. अब भी मैं यही काम कर रहा हूं ..कभी विवेक से काम लेकर तुम शायद मेरी इस हालत पर रहम करो .. थका हुआ दिमाग कह रहा था .. अपने ही दिल से .. । दिमाग की इस व्यथा को मैंने कहीं पढ़ा .. पढ़कर .. मैं सोच रहा था ..।
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